-दीपक रंजन दास
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने संसद में एक सवाल उठाया। इस पर पिछले लगभग एक सप्ताह से जमकर हो-हल्ला हो रहा है। पर यह हंगामा सवाल या उसके मेरिट को लेकर नहीं है। शोर-शराबा इस बात पर हो रहा है कि महुआ ने एक उद्योगपति हीरानंदानी से पैसे और उपहार लेकर यह सवाल पूछा है। जिस देश में सांसद या विधायक बनने के लिए कोई न्यूनतम योग्यता न हो, वहां अधिकांश सांसद और विधायकों के पास इस तरह के लोग होंगे ही, जिनके सलाह-मशविरे पर वह काम करेगा। वैसे भी जनप्रतिनिधि एक क्षेत्र विशेष का प्रतिनिधि होता है, कोई विषय विशेषज्ञ नहीं। अखबारों में छपने वाली भ्रष्टाचार की खबरों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। एक ठेकेदार की चुगली दूसरा ठेकेदार करता है तभी बात सामने आती है। पुलिस भी अधिकांश मामले अपराधी और पूर्व अपराधियों की सूचनाओं पर ही हल कर पाती है। इसी तरह किसी उद्योगपति की अंडर-द-टेबल हरकतों को जितनी आसानी से एक दूसरा उद्योगपति ताड़ लेता है वह किसी सरकार के बस का नहीं होता। महुआ के विवाद का जिक्र खास इसलिए की तलवारें दोनों तरफ से खिंची हुई हैं। पिछले दस सालों में जो एक बड़ा परिवर्तन देश में आया है वह यह कि कुछ नेता बेखौफ हो गए हैं। अब उन्हें केन्द्र या केन्द्र की एजेंसियों का डर नहीं लगता। वो आंखों में आखें डालकर सवाल पूछते हैं। ऐसे लोगों का मीडिया पर से भी भरोसा उठ चुका है। वे अब सीधा एक्स पर बातें करते हैं। एक्स अब बड़े लोगों का फेवरिट मंच हो गया है जहां वे न केवल भड़ास निकालते हैं बल्कि लोगों को इतना मसाला दे देते हैं कि चंद पंक्तियों की सूचना चार कॉलम की खबर बन जाती है। महुआ मामले में तो एक वास्तविक एक्स का भी रोल सामने आया है। इस पूरे घटनाक्रम के सूत्रधार हैं सुप्रीम कोर्ट के लॉयर जय अनंत देहाद्राई। महुआ ने कहा है कि अनंत देहाद्राई एक तिरस्कृत प्रेमी हैं जो अपनी खीझ निकाल रहे हैं। अब आते हैं सवाल पर। हीरानंदानी ने महुआ की मदद जिस सवाल को पूछने के लिए की थी, वह सवाल अदानी समूह को लेकर था। इस मामले में महुआ ने सीना ठोंक कर कहा है कि अदानी के खिलाफ संसद में सवाल उठाने के लिए वे सुचेता दलाल, शार्दुल श्रॉफ और पल्लवी की मदद लेती थीं। वे फाइनेंशियल टाइम्स, न्यूयॉर्क टाइम्स और बीबीसी के पत्रकारों के भी सम्पर्क में रहती थीं। आखिर पुख्ता जानकारी हासिल करने के लिए कई स्रोतों का इस्तेमाल करने में गलत क्या है? यदि सवाल में दम है तो सरकार को उसका जवाब देना चाहिए। सवाल बेबुनियाद है तो उसे रिजेक्ट कर पूछने वाले के खिलाफ कार्रवाई करे। देश की शीर्ष अदालतें भी ऐसा ही करती हैं। पर यहां तो सवाल को डस्टबिन में डाल कर सवालिए पर ही बंदूक तान दी गई है।
Gustakhi सवाल को छोड़ सवालिये पर तान दी बंदूक




