भिलाई। भाजपा की दूसरी सूची लीक होने के बाद उठे विवाद के बवंडर को थामने की कोशिशें चल रही है। प्रदेशभर की कई सीटों पर विरोध के स्वर मुखरित होने के बाद अब पार्टी नए सिरे से सर्वे करवा रही है। इसमें दुर्ग जिले की भी कुछ सीटें शामिल होने की खबर है। इधर, दुर्ग शहर सीट से गजेन्द्र यादव का नाम सामने आने के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई है। एक धड़े ने रायपुर जाकर गजेन्द्र को टिकट देने का विरोध किया है। दुर्ग में भी नए सिरे से सर्वे करवाया जा रहा है। पार्टी सूत्रों का दावा है कि एक-दो दिन में यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। पार्टी की दूसरी सूची पितृपक्ष के बाद जारी किए जाने की बातें सामने आ रही है।
नामों की घोषणा से पहले ही पार्टी प्रत्याशियों की सूची कैसे लीक हो गई, इसकी पार्टी अपने स्तर पर जांच कर रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ में प्रत्याशियों के विरोध को देखते हुए भाजपा को कई सीटों पर पुनर्विचार के लिए मजबूर होना पड़ा है। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में दो दर्जन के करीब सीटों पर एक बार फिर से सर्वे शुरू कराया गया है। यह सर्वे संगठनात्मक स्तर पर हो रहा है। इस सर्वे के जरिए यह जानने की कोशिश की जा रही है कि कार्यकर्ताओं के विरोध की वजह क्या है? क्या प्रत्याशी जीतने की स्थिति में है? उसकी क्षेत्र में पकड़ कितनी है? इसके अलावा कौन सा चेहरा सबसे बेहतर हो सकता है, यह भी सर्वे में मुख्य रूप से पता किया जा रहा है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, यह पूरी प्रक्रिया एक-दो दिन की ही है। सर्वे की रिपोर्ट जल्द ही प्रदेश संगठन और उनके जरिए शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचाई जाएगी। इसके बाद यदि जरूरी हुआ तो प्रत्याशी का नाम बदला जा सकता है।
…तो कांग्रेस का 75 प्लस तय
भाजपा नेताओं का मानना है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जिस तरह से टिकट वितरण कर रहा है, उससे भाजपा की सरकार बनाना तो दूर अपितु 2018 में मिली कुल 15 सीटों को हासिल करना भी मुश्किल होगा। इससे कांग्रेस का 75 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य भी सौ फीसद तय होगा। पार्टी के जानकारों का कहना है कि जिस तरह से पहली सूची जारी की गई, उसे देखने के बाद कोई भी भाजपाई आसानी से कह सकता है कि नतीजे क्या होंगे? अब दूसरी सूची में जिस तरह के नामों को तरजीह दी गई, उसने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। गौरतलब है कि हालिया कुछ सर्वे सामने आए हैं, जिसमें भाजपा को 20 से 28 सीटें मिलती हुई बताया गया है। लेकिन पार्टी के स्थानीय नेताओं का कहना है कि जो चेहरे तय किए गए हैं, उन पर जनता का भरोसा हासिल करना काफी मुश्किल होगा।
नया नेतृत्व तैयार करने की कवायद
इधर, संगठन से जुड़े एक नेता का कहना था कि पार्टी के पास यह पक्की रिपोर्ट है कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनाना काफी मुश्किल होगा। लेकिन यहां सबसे बड़ी समस्या यह सामने आई है कि प्रदेश के सीनियर नेताओं ने अपने पीछे दूसरी पंक्ति तैयार ही नहीं की है। इसलिए शीर्ष संगठन भविष्य को देखते हुए टिकट का वितरण कर रहा है। उक्त नेता के मुताबिक, जिन लोगों के नाम टिकट के लिए तय किए गए हैं, भले ही वे वर्तमान में जीतने की स्थिति में न हों, लेकिन यह आने वाले समय में पार्टी के लिए नई सीढ़ी साबित होंगे। ऐसे में जरूरी है कि नया नेतृत्व उभारा जाए। क्योंकि छत्तीसगढ़ के बड़े नेता तेजी से बूढ़े हो रहे हैं। विधानसभा के कुछ महीनों बाद ही लोकसभा के भी चुनाव होने हैं। उस वक्त पार्टी के पास एक क्षेत्र से कई चेहरे और उनका क्षेत्रीय प्रभाव होगा। जिसका बेहतर लाभ भी मिलेगा।
चुनावी ऐलान के बाद माहौल बनाएंगे पीएम मोदी
भले ही भाजपा के कई नेताओं को छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने की संभावनाएं नहीं दिख रही हो, किन्तु संगठन यहां कोई कसर नहीं छोडऩा चाह रहा है। भाजपा ने यह फैसला किया गया था कि छत्तीसगढ़ में चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसलिए किसी भी चेहरे को सामने नहीं लाया गया। अब पार्टी पीएम मोदी के चेहरे को भुनाने की तैयारी में है। खबर है कि चुनावी बिगूल बजते ही राज्य के सभी 5 संभागों में प्रधानमंत्री की सभाएं और रैलियां कराई जाएगी। इसके जरिए सभी 90 सीटों को साधने की रणनीति बनाई गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी की लोकप्रियता छत्तीसगढ़ में भी कहीं कम नहीं है। कहा जा रहा है कि यदि आवश्यक हुआ तो मोदी की सभाओं को और भी बढ़ाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में रायपुर (20 सीटें), बिलासपुर (24 सीटें), दुर्ग (20 सीटें), सरगुजा (14 सीटें) और बस्तर (12 सीटें) संभाग हैं।
कभी भी लग सकती है आचार संहिता
एक ओर जहां राजनीतिक दलों ने चुनाव की तैयारियां ते•ा कर दी है और प्रत्याशियों के चयन की कवायद जारी है तो वहीं दूसरी ओर निर्वाचन आयोग ने भी चुनाव की तैयारियां पूरी कर लीहै। निर्वाचन आयोग की एक टीम 20 दिन पहले छत्तीसगढ़ में तैयारियों की समीक्षा कर चुकी है। कल ही दिल्ली में सभी 5 राज्यों के चुनावों की समीक्षा की गई। इसके बाद कयास लगाया जा रहा है कि रविवार या सोमवार को चुनाव आयोग बैठक कर चुनाव तारीखों का ऐलान कर सकता है। आचार संहिता की संभावनाओं के बीच सरकार में भी सुगबुगाहट देखी जा रही है। बचे हुए और पेंडिंग कामों को जल्द से जल्द पूरा कराया जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार 2003 में चुनाव हुए थे। इसके लिए आचार संहिता 12 अक्टूबर को लागू की गई थी। 2008 में 14 अक्टूबर, 2013 में 4 अक्टूबर और 2018 में 6 अक्टूबर को आचार संहिता लागू की गई थी।




