रायपुर। छत्तीसगढ़ में दोनों चरणों की वोटिंग खत्म होने के बाद राजनीतिक पंडित इस गुणा भाग में लग गए हैं कि इस बार किसकी सरकार बनने जा रही है। इसके लिए आंकड़े खंगाले जा रहे हैं। इस बीच दोनों ही दल कांग्रेस व भाजपा राज्य में सरकार बनानेके दावे कर रहे हैं। दोनों दलों के नेताओं में सरकार बनाने के प्रति आश्वस्ति दिख रही है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में शुक्रवार को 70 सीट के लिए दूसरे एवं अंतिम चरण की वोटिंग हुई। राज्य में कुल 70.59 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। चुनाव आयोग के अनुसार, फाइनल आकंड़ा 75 फीसदी के करीब जा सकता। प्रदेश में दूसरे चरण के मतदान के लिए 1,63,14,479 मतदाता थे। इस चरण में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, आठ मंत्रियों और चार सांसदों समेत 958 उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में बंद हो गया। पहले फेज की 20 फीसदी सीटों पर 76 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ।
दूसरे फेज के मतदान में संजारी बालोद सीट पर 84.07 फीसदी तथा राजधानी रायपुर की रायपुर नगर दक्षिण सीट पर सबसे कम 52.11 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। राज्य में हुई बंपर वोटिंग के क्या सियासी मायने हैं। दोनों ही दलों कांग्रेस व भाजपा सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों को करीब 75 फीसद वोटिंग के आंकड़े हैरान जरूर कर रहे हैं। लेकिन यह देखना भी जरूरी है कि इससे पहले हुए चुनावों में कितने फीसद वोटिंग हुई।
आइए आंकड़ों से जानते हैं।
2018 का चुनाव
2018 के विधानसभा चुनाव में 75.3 फीसदी मतदान हुआ था। इस दौरान राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ था। कांग्रेस को 43.9 फीसदी वोट शेयर के साथ 68 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, बीजेपी को 15 सीटें मिली थी।
2013 में सत्ता बरकरार रही
2013 के विधानसभा चुनाव में राज्य में 75.3 फीसदी वोटिंग हुई थी। तब बीजेपी अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही थी। बीजेपी को 2013 के चुनाव में 49 सीटें मिली थीं वहीं, कांग्रेस को 39 सीटें मिली थीं।
2008 में क्या था आंकड़े
2008 के विधानसभा चुनाव में राज्य में 70.6 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस दौरान बीजेपी को 50 और कांग्रेस के खाते में 38 सीटें आई थीं। बीजेपी का वोट शेयर 40 फीसदी था वहीं, कांग्रेस का वोट शेयर 38 फीसदी थी।
2003 में कितने फीसदी हुआ मतदान
2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद पहली बार 2003 में विधानसभा के चुनाव हुए थे। तब राज्य में 71.3 फीसदी वोटिंग हुई थी। राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी। बीजेपी के खाते में 50 सीटें आई थीं जबकि कांग्रेस के खाते में 37 सीटें आई थीं।
कम होंगी कांग्रेस की सीटें?
इधर, भाजपा की चुनावी घेराबंदी के बाद अब कांग्रेस के लोग भी स्वीकार कर रहे हैं कि पार्टी की सीटें पिछली बार की अपेक्षा कम हो सकती है। कांग्रेस ने अबकी बार 75 पार का नारा दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पहले चरण में जिन 20 सीटों पर वोटिंग हुई थी, उसमें भाजपा को खासी संभावनाएं नजर आई है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इन 20 सीटों में से 12 सीटें जीतने की बात भी कही थी। इनमें बस्तर क्षेत्र भी शामिल है, जहां की 12 सीटों पर मतदान हुआ था। विगत चुनाव में भाजपा का यहां से सूपड़ा साफ हो गया था। लेकिन इस बार भाजपा को अपने पैर जमते दिखे हैं। वहीं माना जा रहा है कि एक और आदिवासी बेल्ट सरगुजा में भी इस बार कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। यहां भी भाजपा ने चक्रव्यूह रचा था। सरगुजा संभाग में कुल 14 सीटें हैं। पिछले चुनाव में यहां से भी भाजपा का स्कोर सिफर रहा था।
काँटे की टक्कर
मतदान के बाद कयासों का दौर शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि इस बार कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन यह तो तय है कि 2018 की अपेक्षा इस बार भाजपा बेहतर प्रदर्शन करने जा रही है। उसे बस्तर, सरगुजा के साथ ही बिलासपुर संभाग में फायदा होने की संभावना जताई जा रही है। दुर्ग और रायपुर संभागों में भी भाजपा पहले के कुछ ठीक-ठीक करती दिख रही है। यही वजह है कि भाजपा के लोग इस बार सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं। हालांकि भाजपा से ज्यादा उत्साह कांग्रेस के नेताओं में है। कई लोग तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर उन्हें बधाई भी दे रहे हैं।