नई दिल्ली (एजेंसी)। कोरोना महामारी के बाद युवा निमोनिया की चपेट में आ रहे हैं। कोविड से पहले निमोनिया 60 साल से अधिक उम्र के मरीज को गंभीर करता था। बदले ट्रेंड के बाद 25 से 35 साल के युवा इससे गंभीर हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण ने फेफड़ों को कमजोर बना दिया है। ऐसे में निमोनिया आसानी से मरीजों पर हावी हो रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि निमोनिया फेफड़ों का संक्रमण है, जो किसी भी उम्र में हो सकता है। इस रोग में फेफड़ों के टिशु में मवाद भर जाता है। इस कारण सांस लेने में दिक्कत होती है। इसका खतरा सबसे ज्यादा दो साल से कम उम्र के बच्चों और 60 साल से अधिक अधिक उम्र के लोगों को रहता है, लेकिन कोरोना महामारी के बाद 25 से 35 साल के युवा भी इसकी चपेट में आकर गंभीर हो रहे हैं, जबकि सामान्य दिनों में यह माना जाता था कि इस उम्र के युवा कभी निमोनिया की चपेट में नहीं आ सकते।
कम उम्र में लोगों को गंभीर कर रहा निमोनिया का बदला ट्रेंड विशेषज्ञों के लिए चुनौती बना हुआ है। कोरोना महामारी ने लोगों के फेफड़ों को कमजोर कर दिया है। जो लोग कोविड से गंभीर हुए थे वह आसानी से निमोनिया की चपेट में आ सकते हैं। सीरो सर्वे के मुताबिक 90 फीसदी से अधिक लोग कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं। ऐसे में डॉक्टरों का कहना है कि यदि यह ट्रेंड इसी तरह बना रहा तो आने वाले दिनों में निमोनिया के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है।
पूर्वी दिल्ली स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल में मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. अमितेश अग्रवाल का कहना है कि कोरोना महामारी के बाद से निमोनिया के ट्रेंड में बदलाव दिख रहा है। पहले 60 साल से अधिक उम्र के मरीज गंभीर होकर अस्पताल आते थे, लेकिन पिछले एक-दो साल से 25 से 35 साल के युवा गंभीर होकर आ रहे हैं। अस्पताल में हर साल 500 से अधिक मरीज निमोनिया से पीडि़त होकर भर्ती होते हैं। इनमें ज्यादातर युवा हैं।
निमोनिया के लक्षण
- खांसने से हरा, पीला या लाल रंग का बलगम आना
- बुखार, पसीना और ठंड लगना
- सांस लेने मे तकलीफ
- चुभने वाला दर्द, जो गहरी सांस लेने या खांसने पर बढ़ जाता है
- भूख में कमी, कम ऊर्जा, और थकान
- मतली और उल्टी, खासकर छोटे बच्चों में
इनमें बढ़ सकता है संक्रमण
- सिगरेट पीना और बहुत अधिक शराब पीना भी निमोनिया होने की आशंका को बढ़ा सकता है
चल रहा है अध्ययन
कोरोना महामारी के बाद निमोनिया से पीडि़त हुए मरीजों में रोग के स्वरूप में बदलाव को लेकर अध्ययन चल रहा है। इसके अलावा भारत के एक तृतीयक देखभाल अस्पताल में कोविड 19 निमोनिया से ठीक हुए रोगियों में फुफ्फुसीय कार्य असामान्यता विषय पर अध्ययन हुआ। इसमें पाया गया कि 55 फीसदी लोगों के फेफड़े सही से काम नहीं कर रहे हैं।